अधूरे पन्ने…

ज़िंदगी की क़िताब में कुछ पन्ने ऐसे भी हैं जो अधूरे ही रह जाते हैं। उन्हें भरने की उम्मीद में चाहे रोशनाई ही ख़त्म क्यों न हो जाए, इनपर लिखाई कभी पूरी नहीं होती। पर ये अधूरी दास्तानें अपने-आप में मुकम्मल भी होती हैं। शायद पूरी हो जाना इनकी क़िस्मत नहीं। या यूँ कह लो … Continue reading अधूरे पन्ने…

दर्द रिस आया!

हरेक कोना सिल दिया फिर भी कहीं से कुछ दर्द रिस आया है दिल की बंज़र ज़मीं पर ये समंदर कहाँ से उभर आया है पिघली हँसी शमाँ के साथ-साथ तारीकियों में एहसास सब नुमायाँ है महफ़िल भी सजी, बोली भी लगी दुनिया के सब कारोबार हुए बेच आई मैं अस्ल-ए-तमन्ना सारी ख़ाली बाजार मेरे … Continue reading दर्द रिस आया!

वो चाँद जब टूटा…

वो चाँद जब टूटा, बिखरे थे कुछ टुकड़े ज़मीं पर वो लहर एक डूबी, बाकी एक बूँद ना अब कहीँ पर फैला हुआ समंदर, वीरान इस मरू के ठीक अंदर अठखेलियाँ करते हैं मोती, छन से गालों पर बिखरकर रात का भूला मुसाफ़िर, लौट पाया ना कभी घर एक लंबी सी कहानी, रह गई टुकड़ों … Continue reading वो चाँद जब टूटा…

बेनाम रिश्ते!

तुमसे ही आया था जीने का सलीका तुम ही ले गए मुझसे जान फिर मेरी मिल गया है मेरी आँखों को मोती खो गई है जो, वो मुस्कान थी मेरी ख्वाबों में आज भी मीठी सी कसक है चुभ गई जो दिल में वो रात थी तेरी उस एक लम्हे में अटक हुआ वज़ूद तुझमें … Continue reading बेनाम रिश्ते!

नेह का बादल…

नेह का बादल बरस भींगने दे अंतर्मन स्नेह सुधा से सिंचित हो मन मरू का हर कण कण कोई ध्वनि सुन पड़ती है विजन वन के गहन से स्वप्न एकाकी विचरते तोड़ कर सारे बंधन बंजर भूमि में चुपचाप खड़े उस एकाकी तरुवर की छाँव करती शीतल व्याकुल हृदय निज हिय सहे समस्त दहन पाषाणों … Continue reading नेह का बादल…

कोरे पन्नों पर हमने भी कुछ रंग भरे थे

कोरे पन्नों पर हमने भी कुछ रंग भरे थे अरमानों की कूची से कुछ ख़्वाब ढले थे वक़्त की शफ़क़ चादर पर हमारे पाँवों के निशाँ चंद लम्हे मुहब्बत के अपनी भी हथेली पे सजे थे चाहे कितने ही फासले हों तेरे मेरे दरम्यां दिलों में अब भी अदावत नहीं, हाँ शिकवे-गिले थे कुछ रिश्ते … Continue reading कोरे पन्नों पर हमने भी कुछ रंग भरे थे

ख़याल

फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का उलझा हुआ हम राहतें ख़्वाहिशों की पाते नहीं भुलाने कि सारी कोशिशें नाकाम कुछ ख़याल हैं कि दिल से जाते नहीं दबी सी आज भी होती है दस्तक मगर दिल धड़क उठ्ठे जोरों से वो आहटें नहीं उनके होने से है एहसास खुद के होने का क्या ही होता ग़र हम वक़्त … Continue reading ख़याल

ख़त !

वो कुछ ख़त थे, शिकवों के, शिकायतों के कुछ कलमे थे ज़र्द पत्तों में लिपटा हुआ दर्द था, कुछ अपनी रानाइयों के लम्हे थे सियाही बिगड़ी थी, जहाँ नाम था मेरा, पलकों से मोती वहाँ टूट के बिखरे थे कच्ची शबनम में भीगा था माहताब वो भी अज़ब रात थी जब तुम गए थे आ … Continue reading ख़त !

पहेली

ज़िन्दगी, नज़र आती है हमेशा एक पहेली सी... आरिफ़ाना सी... चल पड़ते हैं हम कई बार उन्ही रस्तों पर, जिनसे गुज़रे हैं पहले भी कभी, वही हमसफ़र, नयी रहगुज़र... वही सफ़र नए हमनफ़स! ना ये राहगीरी ना ये राहबरी ना ये रस्म-ओ-राह ना राहते-जाँ... इसी आमन्दो - रफ़्त में गिरफ़्त हम बस यूँ ही हमेशा चला चलें!

प्रेम…

प्रेम, सीता सा हो तो गुज़रता है अग्नि कि ज्वाला से प्रेम, राधा सा हो तो बिछड़ता है अपने गोपाला से प्रेम, रुक्मिणी सा हो तो बँटा मिलता है कितने ही अंशों में प्रेम, मीरा सा हो तो सुख ही ढूँढता है विष के भी दंशों में