वक़्त!

वक़्त,
अपनी रफ़्तार से चलता हुआ
हर लम्हा, हर पल
कुछ घट जाता है पलकें झपकाते ही

बातें,
रेत की तरह मुट्ठी से फिसलती हुई
छोड़ जाती हैं,
बस अपने होने का एहसास

खुशियाँ,
जैसे गीली रेत पर पाओं के निशान
एक लहर की उम्र लिए
लहर आई और निशान गायब

मंज़र,
ठहर जाता है आँखों में बस वो
जिस पल लहरों ने निशानों को छुआ था

रह जाती हैं,
कुछ रिश्तों की बिखरी यादें
किसी चूड़ी के टूटे टुकड़े, दर्पण की किरचें

ज़िन्दगी,
अपने दामन में चुपचाप सब समेटे
लिए फिरती है इंतज़ार … मौत का!!!

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