कोरे पन्नों पर हमने भी कुछ रंग भरे थे

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कोरे पन्नों पर हमने भी कुछ रंग भरे थे
अरमानों की कूची से कुछ ख़्वाब ढले थे

वक़्त की शफ़क़ चादर पर हमारे पाँवों के निशाँ
चंद लम्हे मुहब्बत के अपनी भी हथेली पे सजे थे

चाहे कितने ही फासले हों तेरे मेरे दरम्यां
दिलों में अब भी अदावत नहीं, हाँ शिकवे-गिले थे

कुछ रिश्ते ऐसे भी हुए हैं जहाँ में कि
रंजिशें लाख सही, हाथ फिर भी दुआ में उठे थे

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