नेह का बादल…

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नेह का बादल बरस
भींगने दे अंतर्मन
स्नेह सुधा से सिंचित हो
मन मरू का हर कण कण

कोई ध्वनि सुन पड़ती है
विजन वन के गहन से
स्वप्न एकाकी विचरते
तोड़ कर सारे बंधन

बंजर भूमि में चुपचाप खड़े
उस एकाकी तरुवर की छाँव
करती शीतल व्याकुल हृदय
निज हिय सहे समस्त दहन

पाषाणों को चीर बही जो
फूट पूर्ण वो जलधारा
महि सी धीर प्राप्ति को
बीते निःशब्द कई एक क्षण

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